Madhu varma

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लेखनी कविता - फिर कर लेने दो प्यार प्रिये - दुष्यंत कुमार

फिर कर लेने दो प्यार प्रिये / दुष्यंत कुमार 

 

अब अंतर में अवसाद नहीं 
 चापल्य नहीं उन्माद नहीं 
 सूना-सूना सा जीवन है 
 कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं 

 तव स्वागत हित हिलता रहता 
 अंतरवीणा का तार प्रिये ..

इच्छाएँ मुझको लूट चुकी 
 आशाएं मुझसे छूट चुकी 
 सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ 
 मेरे हाथों से टूट चुकी 

 खो बैठा अपने हाथों ही 
 मैं अपना कोष अपार प्रिये 
 फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..

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